हौज़ा न्यूज़ एजेंसी |
काबा बे चैन है और ख़ाक बे सर है दीवार
बस अली के लिए मिन्न कशे दर है दीवार
अहादीस का है झूमर, तेरे माथे का निशा
नूर बिखरा तेरा हद्दे नज़र है दीवार
आम रस्ते से भला दाखिले काबा क्यो हो !!?
तेरे आगे अबू तालिब का पिसर है दीवार
कोशिशे लाख छुपाने की करे अहले इनाद
इस निशा के लिए ख़ुद सीना है दीवार
दामने शक तेरे तकता हूं बड़ी हसरत से
जैसे ये मोज्ज़ा शक़्क़े क़मर है दीवार
जब से असर पे लबे सहने हरम माहे रजब
तज़केरा तेरा ही बस शाम व सहर है दीवार
दिल कशी पे तेरी होते है समावात नेसार !
तेरा ये एक निशा रशके क़मर है दीवार
वारिसे लम्ह ए कुन, आया है नदजीके हरम
झूम के सज्दे मे गिर, वक़्ते सहर है दीवीर
जिसने इमकान के हाथो मे दिया इत्रे वुजूद
उसीक खुश्बू से बदन तेरा भी तर है दीवार
नदीम सिरसिवी